ऑनलाइन शौपिंग साइट्स और लोगों के फैशन ट्रेंड्स और दूसरों से हटकर
लगने के चक्कर ने लोगों की शौपिंग की जरूरतों को एक नया आप्शन दिया है और इस ऑनलाइन
खरीददारी ने उनके लाइफस्टाइल को काफी फैशनेबुल और ट्रेंडी बना दिया है और ऐसे ही
माहौल में पैदा हुए कुछ मुझ जैसे लोग भी, जिन्हें टाइटल मिलता है ‘शॉपहोलिक’ का या
यूँ कहें फालतू के पैसे बर्बाद करने का। शॉपहोलिक लोग, ऐसे लोग होते हैं जो शौपिंग
अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये नहीं करते बल्कि अपनी वार्डरॉब को ट्रेंडी
चीजों से भरने और सिर्फ अपनी इस शौक को पूरा करने के लिये करते हैं।
आइये जानते हैं कुछ यूनिक बहाने और उनके विचित्र से शौक :-
- कमाल के बहाने होते है शॉपिंग के दीवानों के
लोगों ने जंगलों से निकलने के बाद गाँव बसाएं और शहर बनाएं और अपनी
सारी सुख-सुविधाएं की चीजें बनाई और उपयोग करना शुरू किया। फिर शुरू हुआ दौर मार्केटिंग
का, जिसने
लोगों की जरूरतों को एक नया आयाम दिया और खरीददारी को एक शौक बना दिया और फिर पैदा
हुए मेरे जैसे लोग ‘शॉपहोलिक’। शॉपहोलिक अपनी शौपिंग अपने शौक पुरे करने के लिए करते
हैं ना कि अपनी जरूरतों के लिए। लेकिन शौपिंग की भी कोई एस्टीमेट होती है और जैसे
ही वो अपनी इस लत पर काबू पाने की कोशिश करते हैं तो उसने सामने शॉपिंग ऑफर्स,
सेल, ऑफर जैसी चीजें उन्हें
दोबारा शॉपिंग के लिए मजबूर कर देती हैं। तो इस तरह से शॉपिंग के दीवाने किसी न
किसी तरह से ढूंढ ही लेते हैं शॉपिंग के बहाने।
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मेरे पास तो कुछ है नहीं पहनने को
कहते हैं कि एडिक्शन एक ऐसी चीज़ है जिसे आप कितनी भी कोशिश करो ऐसे
ही नहीं जाती या यूँ कहें कि मन हमेशा व्याकुल होता है और हमें संतुष्टि नहीं
होती। शॉपहोलिक लोग भी काफी हद तक इस फॉर्मुले पर फिट बैठते हैं। बार-बार शौपिंग के
लिये उनका सबसे आम बहाना होता है कि उनके पास पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं
हैं। वैसे तो कपड़ों की अलमारी में ऐसे कई कपड़े होते हैं, जिनका उन्होंने उद्घाटन तक भी नहीं किया
होता है, लेकिन क्या कर सकते है! वो कहते हैं ना शौक बड़ी चीज़ होती है, सही ही कहते
हैं।
- सिर्फ ड्रेस इम्पोर्टेन्ट नहीं, मैचिंग जूते भी चाहिये
शॉपहोलिक लोगों में क्रेज ज्यादा से ज्यादा कपड़े खरीदने का शौक होता
है। लेकिन फिर आती है बात मैचिंग शूज की। जितने ज्यादा कपड़े उतने ही उन कपड़ों के
साथ के फुटवीयर और फिर शुरू हो जाती है शूज की शौपिंग। शॉपहोलिक भी कमाल के होते
हैं, क्यूंकि कभी ड्रेस के लिये मैचिंग शूज चाहिए होते हैं तो कभी जूतों से मैच
करती हुई ड्रेस या फिर कभी-कभी दोनों ही। यह सब कुछ मिलाकर सोचा
जाए तो इन सब में शॉपिंग तो होनी ही होनी है।
विंटर्स आये नहीं की शौपिंग शुरू! शॉपहोलिक की जुबानी होती है कि बाहर
कितनी ठंड होने लगी है, मुझे अभी से ही
विंटर शॉपिंग कर लेनी चाहिए! स्टार्ट के सीज़न सेल भी चल रही है और फिर भले ही रात
को AC फुल करके सोयें लेकिन शॉपिंग के लिये ठंड का ये बहाना इतना भी बुरा नहीं है।
- ये तो स्टोर वाले ने थमा दिया
शॉपहोलिक लोग चाहे जितनी मर्ज़ी शौपिंग करें लेकिन ज्यादातर ये स्टोर के
लोगों को ब्लामे करते रहते है। नए-नए कपड़े और ट्रेंडी डिजाईन शॉपहोलिको को जल्दी
प्रभावित करती हैं और इन लोगों को स्टोर वाले भी दूर से पहचान जाते हैं और शॉपहोलिक
लोग उनका आसान लक्ष्य बनते हैं।
- मेरा मूड खराब है, सो लेट्स हवे शौपिंग
ज्यादातर शॉपहोलिक लोगों का मूड खराब होने पर या ब्रेकअप होने के बाद
लगातर शॉपिंग मॉल्स में आसानी से देखा जा सकता है। शॉपहोलिकों की यह गलतफ़हमी ही है
क्यूंकि उनका मानना ये होता है कि शॉपिंग करने से वो अपने दिल के दर्द को हल्का कर
पाएंगे लेकिन शायद ही कभी ये ट्रिक काम आती है क्योंकि ऐसे समय में आपका दिमाग ठीक
नहीं होता और शॉपिंग कर आप फिज़ूल की खर्च भी ज्यादा कर लेते हैं।
- शौपिंग करना कोई अपराध तो नहीं
वैसे तो शौपिंग के लिए महिलाएं ही बदनाम हैं लेकिन अब शॉपहोलिक होना
केवल महिलाओं का ही कॉपीराइट नहीं रह गया है। आज के फैशनेबुल माहौल में एडजस्ट होने
के लिए पुरुष और महिलाएं दोनों ही शौपिंग के एडिक्टेड हो चुके हैं। टीवी पर
विज्ञापन, समर
सेल, विंटर
सेल, दिवाली धमाका, न्यू इयर सेल जैसी कई तरह के सेल सालों भर चलती रहती है। लेकिन
एक बार यह जरुर सोचें कि ऐसे भी कई लोग हैं जो बेहद जरुरत का सामान ही खरीदते हैं
और कई बार तो उन्हें खरीद पाने में भी असमर्थ होते हैं। हालांकि शॉपहोलिक होना कोई
अपराध नहीं, बशर्ते आपको इसकी सीमा का पता हो।
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